उठती नहीं निगाहें किसी और की तरफ
पाबंद कर दिया है तेरी नजर मुझे
हाल तो अब कुछ इस तरह है मेरा की
मिलता ना सुकून दिन भर मुझे…
इकरार में शब्दों की एहमियत नहीं होती,
दिल के जज़्बात की आवाज़ नहीं होती,
आँखें बयान कर देती है दिल की दास्तान,
मोहब्बत लफ्जों की मोहताज नहीं होती
यह आईने नही दे सकते तुम्हे
तुम्हारी खूबसूरती की सच्ची ख़बर….
कभी मेरी इन आँखों में
झांक कर देखो की कितनी हसीन हो
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महकता हुआ जिस्म तेरा गुलाब सा
नीद के सफर में मीठे ख़्वाब सा
दो घूंट पी लेने दे इन आँखों की मस्तियों को
नशा तेरी आँखों का शबाव जैसा..
तेरी नजरों के हम यूँ ही गुलाम थें
क्या जरूरत थीं आजमानें की
यूँ ही बेहाल पड़े हैं तेरी यादों में
क्या जरूरत थी खिलकर मुस्कराने की
बिन मंजिल के निकले थे हम राहों में
बसी है उनकी तस्वीर मेरी आंखों में
क्या करू तारीफ़ तुम्हारी आँखों की
बस इनमें डूब जाने की ख्वाइश है
पहले ही तेरी अदा का दीवाना जो हूँ
अब और किस बात की गुंजाइश बसी है
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नशीली आँखों से वो जब हमें देखते है,
हम घबरा कर आँखें झुका लेते है,
कौन मिलाये उन आँखों से आँखें
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