मेरे बहते आंसुओ की कोई कदर नहीं क्यों इस तरह नजरो से गिरा देते हो क्या यही मौसम पसंद है तुम्हे जो सर्द रातो में आंसुओ की बारिश करवा देते हो.
मुझको ऐसा दर्द मिला जिसकी दवा नहीं, फिर भी खुश हूँ मुझे उस से कोई गिला नहीं, और कितने आंसू बहाऊँ मैं उसके लिए, जिसको खुदा ने मेरे नसीब में लिखा नहीं.
सदियों बाद उस अजनबी से मुलाक़ात हुई, आँखों ही आँखों में चाहत की हर बात हुई, जाते हुए उसने देखा मुझे चाहत भरी निगाहों से, मेरी भी आँखों से आंसुओं की बरसात हुई.
आँखों में आँसुओं की लकीर बन गई, जैसी चाही थी वैसी ही तकदीर बन गई, हमने तो चलाई थीं रेत में उँगलियाँ, गौर से देखा तो आपकी तस्वीर बन गई.