काश बनाने वाले ने हमको आँसू बनाया होता,और मेहबूब की आँखों में बसाया होता,जब गिरते उनकी आँखों से उनकी ही गोद में,तो मरने का मज़ा कुछ अलग ही आया होता.
मुझको ऐसा दर्द मिला जिसकी दवा नहीं,फिर भी खुश हूँ मुझे उस से कोई गिला नहीं,और कितने आंसू बहाऊँ मैं उसके लिए,जिसको खुदा ने मेरे नसीब में लिखा नहीं.
सदियों बाद उस अजनबी से मुलाक़ात हुई,आँखों ही आँखों में चाहत की हर बात हुई,जाते हुए उसने देखा मुझे चाहत भरी निगाहों से,मेरी भी आँखों से आंसुओं की बरसात हुई.