गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
ज़िंदगी कभी भी ले सकती है करवट तू गुमा ना कर बुलंदिया छू हज़ार मगर, उसके लिए कोई गुनाह ना कर
बेगुनाह कोई नही, सबके राज़ होते है, किसी के छूप जाते है, किसी के छप जाते है.
थोड़ी सी माफी उधार दे दे ए खुदा जानता हूं कोशिश चाहे जितने भी कर लूं गुनाह मुझसे होते रहेंगे
क्यों ना मिलती हमे मोहब्बत में आखिर, हमने भी बहुत दिल तोड़े थे उस सख्स की खातिर