रोते रहे सारी रात तकिये में मुँह छिपाए, गम को हल्का करते है आँसुओं को आँखों से बहाये,क्या पता था मेरा रोना किसी को इतना भायेगा, मुझे रुलाने की लिए वो हर पल याद आएगा…
gulzar sahab ki aansu shayari
काश बनाने वाले ने हमको आँसू बनाया होता,और मेहबूब की आँखों में बसाया होता,जब गिरते उनकी आँखों से उनकी ही गोद में,तो मरने का मज़ा कुछ अलग ही आया होता..
बहुत चाहा उसको जिसे हम पा न सके,ख्यालों में किसी और को ला न सके,उसको देख के आँसू तो पोंछ लिए,लेकिन किसी और को देख के मुस्कुरा न सके..
gulzar sahab
एक दिन करोगे याद प्यार के ज़माने को,जब हम चले जाएँगे ना वापिस आने को,जब महफ़िल मे चलेगा ज़िक्र हमारा तो,तन्हाई ढूँढोगे तुम भी आँसू बहाने को..
मत सुनो नाराजगी का सबब मुझसे,कैसे-कैसे खेले हैं नसीब ने खेल मुझसे,अब कैसे छिपाऊं अश्क इन आँखों में,क्या बताऊँ क्या बिछड़ गया है मुझसे..
gulzar sahab
भर आई मेरी आँखे जब उसका नाम आया,इश्क नाकाम सही फिर भी बहुत काम आया,हमने मोहब्बत में ऐसी भी गुजारी कई रातें,जब तक आँसू न बहे दिल को आराम न आया..
gulzar sahab
जिन्हें सलीका है ग़म समझने का, उन्हींके रोने में आँसू नज़र नहीं आते,ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना, बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते…
सदियों बाद उस अजनबी से मुलाक़ात हुई,आँखों ही आँखों में चाहत की हर बात हुई,जाते हुए उसने देखा मुझे चाहत भरी निगाहों से,मेरी भी आँखों से आंसुओं की बरसात हुई..