रात को चमका था अंग अंग चाँदनी में। अब धुप की छाँव में बेताबी भर रही है। फूलती हुई साँसे सीने से दिल में उतर रही है। दिल से निकली तरन्नुम रोम रोम में घुल रही है
इक मुलाकात करो हमसे इनायत समझ कर, हर चीज का हिसाब देंगे कयामत समझ कर, मेरी मोहब्बत पे कभी शक न करना, हम मोहब्बत भी करते हैं इबादत समझ कर…
टूटे छत से बरस रही थी वूँदे तन्हाई की , वो सर्द रातो मै मेरी महल बनके आ गये मै भटक रहा था प्यासा रेगिस्तान मै अकेला, वो हाथो मै मेरे मीठा जल बनके आ गये..
बहुत आता है लुत्फ़ रूठने मनाने में कहीं लग जाये कोई बात तो फिर क्या करोगे सज़ा तो लूँ तुझे सुरमे की तरह आँखों में कभी जो आ गई बरसात तो फिर क्या करोगे..
जो मैं तुमसे बिछड़ा तो तड़प तड़प के मर जाऊंगा खुशिया तुम बिन सब अधूरी है नही जी पाऊंगा एक बार तो मुझको भी अपने इश्क़ को आजमाने दो..